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वही चूल्हा वही फूंकनी
वही अलाव याद आता है
सर्द सुबह की पहली किरण में
माँ याद याद आती है।
वही आंगन वही खिड़की
वही दर याद आता है
अकेला जब भी होता हूँ
घर याद आता है।
वही खेत वही मेड
वही खलिहान बंजर नज़र
आता है
खेतो में अब किसान लाचार नजर आता है।
वही शोर वही शरारत
वही फ़साना याद आता है
गलतिया जब भी करता हूँ
माजी याद आता है।
वही दोस्त वही दौर
वही इतवार पुराना याद आता है।
ख्वाबो के मंजर में
अब गाँव याद आता है।
- रोहन जोशी
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