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कोई कहता है इसे दरिया
कोई कहता है इसे नदिया
कितनो को इसने जीवन दिया
कितनो को जीने का जरिया
सबकी प्यास बुझाती
सबको गले लगती
सभ्यता की हो पहचान
लोग करते इसमें स्नान
पापो से तुम मुक्त करती
निर्मल मन को शुद्ध करती
गंगा जमना सरस्वती कितने है तेरे नाम
भारत की मुक्तकामी चेतना का द्वार
पर्वतों को आदर देती
पूर्वजो के मोक्ष का द्वार
है वेदों में जिक्र तेरा
अब नही आस्तित्व तेरा
कभी न रुकती कभी न थकती
शुद्ध निर्मल कल-कल बहती
धरती माँ के आंचल में
आगे बढ़ना ही जीवन है
नदिया हमे सिखाती
रोहन जोशी
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