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हुआ इंसान को घमंड बड़ा, है उससे खूबसूरत कुछ नहीं
हुआ उसे यकीन भी बहुत, है उसे झुठलाना आसान नहीं।
चलता रहा कुछ दिन फक्र से, खोखली बुनियादें साथ लिए
ना लिया काम एक दिन सब्र से, यार मजहब भी बांट लिए।
उसी शाम को मिला इश्क से, उसी मिठास में खो गया
कर मैला बिस्तर, दुख बांटे उससे, चादर ओढ़ी सो गया।
रूएंदार नीला सा कोट पहने, देख रहा था आसमान ये सब
बोला......
परेशान हूं पर मैं लाचार नहीं, बता तू ये समझेगा कब।
सिखलाता हूं आज मैं तुझको, अभी नहीं ये तेरा वहम गया
भेज इश्क का फरमान किरण को, तम्मनाओं का इजहार किया
सुबह इंसान के उठने से पहले, बाहें खोल कर बैठ गया
देख प्रकृति का इश्क अनोखा, बेखबर सा तुच्छ सहम गया
खिड़की से सहमा सा झांकता, चारदीवारी में अब ठहर गया।
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