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आओ प्रियतम हम तुम दोनों स्नेह भरा अनुराग करे
श्रद्धा पूरित अधरों का नवचुम्बन से सत्कार करें
कविता की भाषा से मैंने प्रियशी सब कुछ कह डाला
नयनों की भाषा से हमनें निज प्रेम प्रदर्शित कर डाला
आ जाओ अब अधरों की भाषा से गीतों का सार करें
और श्रद्धा पूरित अधरों का नवचुम्बन से सत्कार करे
नूतन वो सपने खिलते थे जब हम आलिंगन में मिलते थे
स्पर्शों का होता था सहज मिलन कपोलो पर मधुबन खिलते थे
आ जाओ अब उन स्पर्शों का भौतिकता से सम्मान करें
और श्रद्धा पूरित अधरों का नवचुम्बन से सत्कार करें
मेरे घर के आँगन में उन्मादों का इक दीप जला
देखा जब तुमको प्रथम बार मन में आशा का सुमन खिला
आ जाओ अब सुमनों की भाषा से भ्रमरों का गुणगान करें
और श्रद्धा पूरित अधरों का नवचुम्बन से सत्कार करें
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