Share0 Bookmarks 217729 Reads0 Likes
खुद से खुदा बन के बैठे है वो जो
परछाई में छुपी गुमनामी सा मैं
हर शय थे फ़िके फिर उसके तो आगे
आँसुओ में नमक की निशानी सा मैं
बहते रहे है अक्स बन कर उसी के
बहकी हुई सी जवानी सा मैं
पास आने को उनके चाहा बहुत था
बिखरे स्याही की बदनामी सा मैं
<
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments