मन की उलझन's image
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क्या कहे किस से कहे दीवारे है यहाँ

तड़पती रही रात भर कहने को कुछ जुबां

पलको के बोझ से आँखे तो न खुली 

खुद से ही सुनते रहे खुद की हम दास्तान 


जितना समझा उतना आसान भी नही था

जिंदगी छोड़ देने का कोई सामान नही था 

इक शोर है अभी बाकी धड़कते दिलो का 

वाकिफ था इस से कोई अनजान नही था 


उनके इल्ज़ामों की फेहरिश्त बड़ी थी काफी

दूसरा वहाँ कोई और इंसान नही था 

समझ भी न पाए जो जख्मी हुए हम 

नश्तर पर किसी के हाथो का निशान नही था 


ज़माने में देखा है नजदीक जा कर सबके 

रिश्तो में वो पहले सा इमान नही था 

कुछ पता ही नही कब उड़ जाएंगे ये बादल

हवाओ का कुछ भी इमकान नही था 


खुद को ही ढूंढते है अब खुद से ही अक्सर 

इस जिंदगी का "राज" कोई हमनाम नही था

खुली जो आँखे तो जाहिर हुई ये सच्चाई 

सजदे मैं सर झुकने का अब काम नही था ....


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