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क्या कहे किस से कहे दीवारे है यहाँ
तड़पती रही रात भर कहने को कुछ जुबां
पलको के बोझ से आँखे तो न खुली
खुद से ही सुनते रहे खुद की हम दास्तान
जितना समझा उतना आसान भी नही था
जिंदगी छोड़ देने का कोई सामान नही था
इक शोर है अभी बाकी धड़कते दिलो का
वाकिफ था इस से कोई अनजान नही था
उनके इल्ज़ामों की फेहरिश्त बड़ी थी काफी
दूसरा वहाँ कोई और इंसान नही था
समझ भी न पाए ज
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