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बुलाया एक रोज़ जिंदगी को पास
पूछा कब तक दोगी तुम आश
देखती रही कुछ कहा भी नही
आँखों से भी कुछ बहा तो नही
चुप सी बैठी देखती रही वो
खोई खोई सी कही रोइ थी वो
सब कुछ उसी से उसका ही सब
उलझी हुई सी मिली थी जो अब
पूछा उसी से उलझन का सबब
पाया जो सब तो खोया क्या अब
सवालो पे मेरे मुश्कराती रही वो
साँसों के साथ बहलाती रही वो
इन साँसों से क्या है नाता फिर तेरा
साँसे ही बताती थी पता फिर तेरा
गुज़रती हुई साँसे बदलता हुआ वक़्त
जिंदगी से राब्ता का "राज" यही है सबब ...
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