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कितना बेवस सा था वो पता नहीं कहा खोया था
आँखे बोलती थी की कुछ वक़्त पहले वो रोया था
क्या मंजर था क्यों था बेक़रार
पता नहीं उसे किसका था "इंतजार"
इंतजार के पल भी अनूठे होते है
बेकरारी में हर खयालो से तकरार
फिर भी इंसान करता है "इंतजार"
इंतजार अपने महबूबा का
इंतजार किसी अजूबा का
इंतजार किसी शगूफा का
हर रंग जिस पल हो बेज़ार
शायद उसी को कहते है "इंतजार"
जिस पल वक़्त थम जाये
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