दर्पण's image
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जिंदगी यु भी बसर करते है आपने आँगन में ही अजनबी से रहते है

 यादो को संजोय बेजुबन सा दर्पण को तकते है 

 ये दर्पण भी कितने रूप दिखता है मन सोचने को विवस सा हो जाता है

 कितने हि छवी को दर्शाता है और खुद का चेहरा देखने को तरस जता है 

 हँसी खुशी गम आँसु सब तो देखे है और दिखाया है

 अब सोचता है कि अपने लिए क्या बचाया है

 सोचता हूँ अगर दर्पण भी आपना चेहरा देख पाता कितना अच्छा होता

 किसी कि आँखो में उतर जाता इतराता इठ्लाता

 अपने कमियो को देख पाता 

 पर वक्त किसके पास जो उस बेजुबान को भी सराहे

 उसका हाल पुछ जाए कुछ उसकी भी सुन जाए

 वो तो दिवार पे टाँग्ने को लाया गया था सो टंगा है

 देखने वालो कि जरुरत से दिखाता है अपने दिल कि किसको कह पाता है 

 कुछ यही हाल हर घर में दिखता है

 दर्पण दिखाता है देख नही सकता है 


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