Share0 Bookmarks 198681 Reads0 Likes
जिंदगी यु भी बसर करते है आपने आँगन में ही अजनबी से रहते है
यादो को संजोय बेजुबन सा दर्पण को तकते है
ये दर्पण भी कितने रूप दिखता है मन सोचने को विवस सा हो जाता है
कितने हि छवी को दर्शाता है और खुद का चेहरा देखने को तरस जता है
हँसी खुशी गम आँसु सब तो देखे है और दिखाया है
अब सोचता है कि अपने लिए क्या बचाया है
सोचता हूँ अगर दर्पण भी आपना चेहरा देख पाता कितना अच्छा ह
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments