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फिर कोई कुत्ता सड़क की भेंट चढ़ गया

Raj vardhan JoshiRaj vardhan Joshi March 6, 2022
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फिर आज कोई कुत्ता सड़क की भेंट चढ़ गया,
किसी को मिली न फुरसत वहीं पड़ा रह गया।
कितने ही लोग वहाँ से गुजरते रहे,
मंजिलों पे आगे को बढ़ते रहे।
कुत्ते हैं इनका यही हश्र होता है,
कुत्ता सदा कुत्ते की मौत मरता है।
पर बात ये छोटी सी यहीं नही रुकती,
सूरज के निकलने पर चांदनी नहीं रहती।
कुत्ता है एक झटके में चला जाता है,
बेबस गरीब बेचारा रोज झटके खाता है।
अंतर इतना है,उसके प्राण नहीं निकलते,
चलता रहता दिन रात यूं ही पांव नही थकते।
हाथों में थैला लिए रहता है,
सुबह भोर ही घर से निकलता है,
कठिन हालातों से झूझता जाता है।
कभी रफ्तार पैरों की, कभी कुत्तों को भगाता है।
गली के कुत्ते भी शेर बन जाते हैं,
जहाँ जायें इनके पीछे लग जाते हैं।
हम सब देखते रहते हैं,
अपने में मगन रहते हैं।
कूड़े वाला ही तो है क्या करना है,
वक्त कहां पास ड्यूटी पे निकलना है।
बचा के उसे कोई तमगा थोड़े ही मिल जाएगा,
करम हैं उसके जैसे,वैसा ही फल पाएगा।
बस हम सब ऐसे ही छिटक जाते हैं,
समझते नहीं समझना नहीं चाहते हैं।
कितनी मश्किल है उसे कैसे काट रहा है,
हमारे कूड़े में भी कुछ अच्छा छांट रहा है।
गुलाम रहे तन से हम सोच में कैसे हो गये,
भिखारी से पैदा हुए हम कुत्तों से बदतर हो गये।

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