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मेरे शहर की पगडंडियां
खत्म हो चुकी हैं
वो बाग फल फूल वो डंडियां
खत्म हो चुकी हैं
बड़े बड़े बाजार
उग आए हैं जिधर भी
नजर डालो
वो परचून की दुकान
वो मंडियां
खत्म हो चुकी हैं।
तीज त्यौहार उत्सव
हैं तो मगर बस
तुरत फुरत
वो इंतजार वो इंतजाम
वो झंडियां
खत्म हो गई हैं
गर्मी तो कम होने से रही
हां वो ठंडियां
खत्म हो गई हैं।
'राज वर्धन जोशी'
खत्म हो चुकी हैं
वो बाग फल फूल वो डंडियां
खत्म हो चुकी हैं
बड़े बड़े बाजार
उग आए हैं जिधर भी
नजर डालो
वो परचून की दुकान
वो मंडियां
खत्म हो चुकी हैं।
तीज त्यौहार उत्सव
हैं तो मगर बस
तुरत फुरत
वो इंतजार वो इंतजाम
वो झंडियां
खत्म हो गई हैं
गर्मी तो कम होने से रही
हां वो ठंडियां
खत्म हो गई हैं।
'राज वर्धन जोशी'
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