हे पतित सोचता है क्या's image
Poetry1 min read

हे पतित सोचता है क्या

Raj vardhan JoshiRaj vardhan Joshi March 5, 2022
Share0 Bookmarks 159 Reads0 Likes
तट पर खड़ा चित्र स्थिर सा
रे पाषाण सोचता है क्या
तू भी हो जा तरल तनिक
हे मानुष सोचता है क्या
ये गहराई ये विस्तार और बहाव
क्यों लगे असहज सा तुझको
उतर थाह ले जल में तल की
तुझे रोकता है क्या
बह न सके तब भी नदियों सा यदि
झरना बनकर बहता जा
नेत्र बंद कर ले प्रायश्चित
हे पतित सोचता है क्या।
'राज वर्धन जोशी'

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts