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तट पर खड़ा चित्र स्थिर सा
रे पाषाण सोचता है क्या
तू भी हो जा तरल तनिक
हे मानुष सोचता है क्या
ये गहराई ये विस्तार और बहाव
क्यों लगे असहज सा तुझको
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