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हां मैं भी कृष्ण बन जाना चाहता हूँ

Raj vardhan JoshiRaj vardhan Joshi February 27, 2022
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मैं सब पर छा जाना चाहता हूँ,
हां मैं भी कृष्ण बन जाना चाहता हूँ।
हर लूँ मै सभी पीड़ाएं तन मन की,
भर दूं सर्वत्र सरिता जीवन प्राणों की।
दुख दरिद्रता अपंगता शिकार बन जाएं,
मुक, बघिर,अपंग वाचाल हो जाएँ।
कुमति, दुर्गति, अहंकार फटक न पाएं,
पुनःसुदामा सदृश ऐसा प्रारब्ध न लाए।
क्रोध, काम, मद, लोभ फटक न पाए,
नियंत्रित ह्रदय मात्र वायु संचरण पांए।
राजनीति की मर्यादा निर्धारित कर दूं,
कौरव-पांडवों की मनस्थिति सम कर दूं।
कर्ण को ही सर्वोत्तम आधार दिला दूं,
उसको ही वास्तविक कर्णधार बना दूं।
धृतराष्ट्र क्यों नेत्रहीन विभूषण पाए,
शकुनि भ्राता क्यों निन्दनीय हो जाए।
दृष्टि प्रदत्त ईश आभूषण कहलाए,
गांधारी किस कारण यूं शापित हो जाए।
क्यों बदले क्रम चलता समय समय पर आए,
अनुचित सा है त्रेता द्वापर से पहले क्यों आए।
युद्ध

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