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रात थे साथ तुम
हम थे बातों में गुम
आप बीती सुनी
और सुनाते रहे
भूले बिसरे कई
याद आते रहे ।
जब ये देखा तुम्हें
नींद आने को है
धुंध छाने लगी
भोर होने को है
हम भी चुप हो गए
जागते ही रहे।
कब न जाने अकस्मात्
हम सो गए
मीठे सपनों की दुनिया में
हम खो गए
सुबह की धूप आई तो तपते रहे।
सुबह आंखें खुलीं
तुम नहीं थे कहीं
बिना बोले बताये बिना
कब गए?भूल कोई हुई?
क्यों कहा कुछ नहीं?
याद कर आंखों से अश्रु बहते रहे।
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