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देह की आसक्ति
सगुणोपासना है।
भोगलिप्सा निरन्तर बेचैन करती है
जलाती धमनियों,फैली शिराओं,
तन्तुओं को अहर्निश उत्ताप से।
एक पागलपन सदा ही
गूंजता है,ध्वनित होता है हृदय में
कामनाओं,वासना की तृप्ति तो
होती नहीं उपचार
अग्नि में घृत डालने से
और भी विकराल होंगी।
आत्मलीन
निर्मल मन वाला
दैहिकता से मुक्
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