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रात भर जोर की बरसात हुई
हर तरफ सिर्फ अंधेरा था ऐसी रात हुई
कभी चमकी अगर बिजली तो उजाला देखा
वरना यह रात स्याह रात हुई ।
रात भर साथ रहे, जाग रहे थे तुम भी
फिर भी कुछ कहा नहीं, न ही कोई बात हुई
सुबह मुंह फेर लेना, चल देना
यही होना था तो फिर किसलिए वो रात हुई?
क्या पता बिछड़ जाएं हम तो फिर पता न मिले
मन में रह जाएं सारे शिकवे गिले
रात में मौके थे पर रात यूं ही बीत गई
अब ये लगता है बेवजह सारी रात गयी।
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