
व्यंग्य विधा के अंतर्गत बहुत कम लिखा गया है। जो भी उपलब्ध है उसमें विशुद्ध व्यंग्य न होकर हास्य-व्यंग्य है। इसे व्यंग्य विनोद भी कहा गया है।
व्यंग्य सीधी चोट कर मर्माहत करता है जबकि हास्य-व्यंग्य सहलाता और किसी हद तक गुदगुदाता चलता है।
केवल व्यंग्य लिखना कठिन कार्य है। इसीलिए हास्य-व्यंग्य लिखनेवालों की भरमार है, व्यंग्य रचनाकार उंगलियों पर गिने जा सकते हैं।
कबीर को हम पहला व्यंग्यकार मान सकते हैं। उसी परम्परा में हरिशंकर परसाई आते हैं। ऐसे लोगों को समाज सहजता से नहीं स्वीकार करता और उन्हें बहुत कुछ झेलना पड़ता है।
परसाई और शरद जोशी ने इस विधा में खूब लिखा और स्तरीय लिखा। जोशी का लेखन उस सूक्ष्म लकीर को नहीं लांघता जहां व्यंग्य की न्यूनता और हास्य की प्रधानता हो जाती है। शब्दों और वाक्य को उधेडना फिर बुनना उनसे अच्छा शायद ही कोई कर पाया।
उपन्यासकार श्रीलाल शुक्ल का 'राग दरबारी 'इस विधा में मील का पत्थर है। अमृतलाल नागर ने पुत्ती गुरू का चरित्र लिखकर व्यंग्य में हाथ आजमाया जो प्रश॔सनीय है।
प्रेमचंद की 'आत्माराम ', 'कफन' जैसी कहानियों में सामाजिक विद्रूप का चित्रण मिलता है जो मन को दुखी कर जाता है। गोपालराम गहमरी, भगवतीचरण वर्मा आदि ने भी इस विधा में योगदान दिया है। के.पी. सक्सेना, रवींद्र नाथ त्यागी से लेकर सम्पत सरल तक इस दिशा में प्रयास किए गए हैं। धर्मयुग के 'बैठे ठाले' में व्य॔ग्य रचनाएं निरन्तर प्रकाशित होती थीं।
इन दिनों ट्विटर पर तीखे व्य॔ग्य देखने को मिलते हैं। इनमें व्यक्तिगत आक्रमण अधिक होते हैं जो शालीनता की सीमा को पार कर जाते हैं।
अन्ततः यही कहा जा सकता है कि परसाई और जोशी का सानी नहीं मिलता।
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