च॔द्रमा,चांद,चंदा,रजनीश,राकापति इत्यादि अनेकानेक नामों से हम उसे जानते हैं जिसे पृथ्वी का उपग्रह कहा जाता है। शुक्लपक्ष में प्रथम रात्रि से निरन्तर आकार में बढ़ता हुआ पूर्णिमा को पूर्णरूपेण गोलाकार हो जाता है। इसे पूनम का चांद भी कहते हैं। चन्द्रमा हमारे दैनन्दिन जीवन का अभिन्न स॔गी है। सुहागिनें पति के दीर्घायु होने की कामना से चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत-उपवास करती हैं।पतिदेव भी सम्मानित होकर अत्यन्त प्रसन्न होते हैं। शरत् पूर्णिमा को आकाश से अमृतवर्षा की आस में खुले में,छतों पर खीर भरे पात्र रखे जाते हैं।गुरु पूर्णिमा तथा कार्तिक और माघ मास की पूर्णिमा भी विशिष्ट होती है। यह हमेशा हमारे आकर्षण और अभिव्यक्ति का केन्द्र रहा है। फिल्मों के नामकरण भी चांद पर किए गए हैं यथा- दूज का चांद,चौदहवीं का चांद,चांद मेरे आजा ,पूनम की रात इत्यादि। शायरों,कवियों और दार्शनिकों ने अपनी कल्पनाशीलता से चांद के गौरव गान में कमाल की रचनाओं से हमारे आनन्द के हेतु महत्वपूर्ण योगदान दिया है। कुछ रचनात्मकता का लुत्फ उठाएं- चांद अंगड़ाइयां ले रहा है चांदनी मुस्कराने लगी है,आधा है च॔द्रमा रात आधी,चांदी का गोल
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