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बन्धु !

प्रणाम स्वीकार करो 

तुमने आने की कृपा की

हमारे आग्रह को स्वीकारा

आकर रुके, टिक भी गये। 


हमने यथाशक्ति भक्ति की 

स्वय॔ को धन्य माना 

तुम भी प्रसन्न हुए 

प्रस्थान का कार्यक्रम स्थगित कर दिया 

आर्थिक भार में वृद्धि होती गई ।


तुम्हारा परामर्श मिलने लगा 

सर्वसाधारण जनों से सर्वथा भिन्न 

लगा कि तुम असाधारण हो 

दूर की सोचते हो 

आश॔कित भी हुआ किंतु श्रद्धा भी हुई। 


बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान गया 

उनकी पुस्तकें देखकर बोले

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