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शैशव से बुढ़ापे तक
चलता चला आया
सोचता हूं अब तक
क्या खोया क्या पाया।
पहले पहल चला तो
न बायां देखा न दायां
बीचोंबीच एक सीध में
स्वय॔ को चलते पाया ।
कभी कभी बाईं ओर
कोई मोड़ भी आया
थोड़ी दूर चला भी पर
राह को उलझा पाया।
दायें चल कर देखें
यह भी मन में आया
चलता जाता हूं अभी
कुछ समझ नहीं पाया ।
अपने ही देश में मैं
घूमता हूं बौराया
कौन सी डगर चलूं
फैसला न कर पाया।
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