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बीतता नहीं बस कट जाता है
अँधेरे से उजाले का समय,
समय, फिर सट जाता है
चारदीवारियों के आँगन में।
चारदीवारियाँ खड़ी संवाद को आतुर
समय को घेरे,
चारों तरफ़ उन्माद मचाती ,
एकांत में भीड़ का सच
पसार देती।
देती और भी बहुत कुछ-
समय, संवाद और एकांत।
हम
एकांत से अनजान
संवाद की परतों में
बस ढूंढते रह जाते
अपने समय के
सच की
पहचान।
-राहुल राय
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