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सब हदें तोड़ दीं थी उसी के लिए
तोड़ के दिल गई जो किसी के लिए
कोई भी काम उसका अकारत नहीं
छोड़ के वो गई बेहतरी के लिए
क्या हुआ गर वो रस्ते बदलने लगी
आम सी बात है ये नदी के लिए
वस्ल की आरज़ू ने दी हस्ती मिटा
सो अमल-ग़म हुआ मरकरी के लिए
उसके तो ख़्वाब भ
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