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सब हदें तोड़ दीं थी उसी के लिए
तोड़ के दिल गई जो किसी के लिए
कोई भी काम उसका अकारत नहीं
छोड़ के वो गई बेहतरी के लिए
क्या हुआ गर वो रस्ते बदलने लगी
आम सी बात है ये नदी के लिए
वस्ल की आरज़ू ने दी हस्ती मिटा
सो अमल-ग़म हुआ मरकरी के लिए
उसके तो ख़्वाब भी देखना जुर्म है
और मैं क़ैद हूं तस्करी के लिए
मकतब-ए-इश्क़ में इश्क़ करते न सब
कुछ तो आते हैं बस हाजिरी के लिए
फूल, इज़हार, इक़रार, बोसा,गले
मुंतज़िर हैं फ़क़त फ़रवरी के लिए
हमको वो इस ज़मीं पे मयस्सर नहीं
आसमां देखते हैं परी के लिए ।
~ वो फिर आएगी
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