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चाल कम थी दाब बढ़ता जा रहा था
मैं नदी में और गहरा जा रहा था
वो जो आया था नदी पर पुल बनाने
वो नदी के साथ बहता जा रहा था
फ़ोन कटना इक बहाना है सरासर
अस्ल में तो फ़ोन काटा जा रहा था
डोर रिश्तों की उन्होंने छोड़ दी थी
ज़ब्त याँ भी थोड़ा थोड़ा जा रहा था
रोज़ अपनी दूरियां बढ़ने लगीं थीं
यूनिवर्स अपना यूं फैला जा रहा था।
~ वो फिर आएगी
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