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क्या याद है तुम्हे हमारी वो पहली मुलाकात,
जब बैठा था मैं समंदर के पास,
बिलकुल था तन्हा, उदास,
पता नहीं कौनसी पुर्नवासी को मैंने माँगा था टूटे तारे से एक मन्नत ख़ास,
जो तुम आयी थी उस रात,
बोहोत क़रीब मेरे पास,
और थामा था मेरा हाथ,
उस दिन से हर रोज़ तुम थी मेरे लिए सबसे ख़ास,
क्योंकि थी तुम मेरे दिल के सब्ब्ब्से पास,
तुम्हारे लिए मैं भी था एक प्यारा सा ऐहसास,
कहती थी तुम हमेशा ये बात,
फिर एक दिन चली गयी तुम छोड़े मेरा ये साथ,
कर गयी तुम तन्हा मुझे फिर एक बार,
आज भी मैं बैठा हूँ उसी समंदर के पास,
और देख रहा हूँ बस तुम्हारी ही आस,
बस तुम आजाओ दूबारा मेरे पास,
और थाम कर मेरा हाथ,
कहो मुझे की.....चलो, शूरू करते हैं एक नया आज!!!
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