Share0 Bookmarks 32867 Reads0 Likes
आज फिर एक बार
उसका ख्वाब चला आया,
मैंने फिर एक बार
अपनी आंखों में अश्क पाया।
कोशिश तो कि पोंछ लु इन्हें,
पर मैंने अपने शरीर को बेजान पाया।।
हां...
लगाई काफ़ी आवाज
मैंने खुदको,
शायद मज़ाक छोड़
बोलेगा मुझे कुछ तो।
न हिला और न कुछ बोला,
बस मुझे चुप चाप उहि सुनता रहा,
हां...
जिसे समझ रहा था
अभी तक मैं कोई सपना,
सच में छोड़ चुका था
शरीर अब मैं अपना।।
सोचा की मेरा शरीर
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments