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मेरी उधार की ज़िन्दगी,कट रही है।
बस कट ही रही है!
किश्त (दर्द) तो हर रोज़ भरता हूँ,पर कमाल है कि-
उधार कम ही नहीं होता!
कैसा कर्ज़ है ये कि,कर्ज़ देने वाले को (ख़ुदा)-
कोई ग़म नहीं होता।
मेरी उधार की ज़िन्दगी,कट रही है।
बस कट ही रही है!
सोचता हूँ कि अब ये उधार,
चुकता कर दूँ;
एक बार में ही सारा हिसाब,
पुख़्ता कर दूँ।
असल (हिम्मत) तो मैं जुटा लूँगा,
सूद (खुशियों) का सहारा-
अब तुमसे है मेरे दोस्तों।
मेरी उधार की ज़िन्दगी-शायद अब ख़ुद की हो जाये!
https://rahulpandeygkp.blogspot.com/2020/02/blog-post.html
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