
वो कैसी औरत है, वो जिस्म बेचती है
वो अल्लाह की बेटी है, वो जिस्म बेचती है
वो तुम-सी नहीं जो सड़कों पे मशहूर बने
वो रूह नहीं बेचती, वो जिस्म बेचती है
टके की ज़ेहनियत उसपे तुम ओढ़ो सफ़ेद चौंगे
तुमने सही कहा - वो तुम-सी नहीं, वो तो जिस्म बेचती है
उसको अपने बाप का पता नहीं मालूम
घर नहीं मालूम जगह नहीं मालूम
वो सिगरेट फूंकती है वो जीन्स पहनती है
तुम्हारी हसरत नोटों पर सोना वो नोटों पर नाचती है
तुम महलों में पलती हो वो परिवार पालती है
अपने गिरेबां में झांको और फिर सोचो
वो कैसी औरत है, वो जिस्म बेचती है
वो जानती है नंगी असलियत तुम्हारी
इन नामी कूंचो में छिपी हैवानियत वो सारी
तुम इंसान बेच डालो, वो अपना ईमान तो न बेचती है
खुद नारी होके तुम ‘वैश्या' कहो जिसको
वो 'वैश्या' तुम्हारे शरीफ मर्दों की हवस झेलती है
वो कैसी औरत है, वो जिस्म बेचती है
ये शिष्टाचार तुम्हारा जो वैश्या उसको बोले
उजले चेहरों के पीछे की हक़ीक़त तुम्हारी खोले
खुद स्त्री होकर स्त्रीत्व पर कीचड़ तमाम फेंके
शिक्षा कलंकित ख़ुद करो, कालिख समाज की उसे बोलती हो
वो अनपढ़ सही पर अपना अस्तित्व न बेचती है
वो तुमसी नहीं वो तो जिस्म बेचती है
वो कैसी औरत है, वो जिस्म बेचती है
वो झांकती है अपनी छोटी सी खिड़कियों से
वीरां सी ज़िंदगी में चेहरे पे लाली पोते
मर्दों की पाक नजरें जब उसको चीरती हैं
तुम उसको घूरती हो वो तुमको देखती है
वो तुमसी नहीं वो तो जिस्म बेचती है
वो कैसी औरत है, वो जिस्म बेचती है
- राहुल अभुआ 'ज़फर' ✍️
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