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सच कहूं तो! आज मेरा मन बहुत उदास है।
ना कुछ खाने की फिक्र, और ना ही उठने की..
बस सुबह से बिस्तर पर लेटे हुए
गुज़रे पलों को याद कर, आंखें भिगो रहा हूं।
पूरी कलाई भर जाती थी,
पूरा दिन हाथ भरा हुआ लेकर इधर से उधर सबको दिखाते फिरते
और बहनों की लाई मिठाई का स्वाद पूरा दिन रहता ।
कुछ सालों से कलाई सूनी ही रहती थी,
सच कहूं तो
अकेलेपन की वजह से कभी बांधा ही नहीं
या
यूं कहें कि उदासी इतनी हो जाती
कि बस र
ना कुछ खाने की फिक्र, और ना ही उठने की..
बस सुबह से बिस्तर पर लेटे हुए
गुज़रे पलों को याद कर, आंखें भिगो रहा हूं।
पूरी कलाई भर जाती थी,
पूरा दिन हाथ भरा हुआ लेकर इधर से उधर सबको दिखाते फिरते
और बहनों की लाई मिठाई का स्वाद पूरा दिन रहता ।
कुछ सालों से कलाई सूनी ही रहती थी,
सच कहूं तो
अकेलेपन की वजह से कभी बांधा ही नहीं
या
यूं कहें कि उदासी इतनी हो जाती
कि बस र
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