
Rachna's लाॅक डाउन वाली रचना:
१.प्रकृति की संतान हैं हम
सदा जननी पर आश्रित हैं
पर शक्ति के अभिमान ग्रस्त हो
हमने बांधा इसे जंजीरों में
धरोहरें लूटी किया शोषण
उसका जिसने सदा किया हमारा पोषण
हाय!कैसी संतानें हैं??
अब नहीं तो कब संभलेंगे हम?
२.माता ने अपने सारे फर्ज निभाए
अपनी संतानों को संपन्न बनाया
जिसने जैसा कर्म किया, वैसा भाग उसने पाया
पर वो माता ही होती है जो
गलती पर बच्चों को डांट लगाए
बातों से न समझे तो अपनी सत्ता का डर दिखलाए
हाय! कैसी संतानें हैं??
अब नहीं तो कब संभलेंगे हम?
३.भटक गए हैं पर रास्ता मिल जाएगा
मां ने जगाया हमको,अब सवेरा हो जाएगा
पर अब भी अगर नींद न टूटी हमारी
रखी हमने अपनी गौरव गाथा जारी
तब होगा क्या?इस भयानक सच के दिखने लगें हैं ढंग
सरकारें नहीं तब प्रकृति करेगी हमें घरों में बंद
हाय! कैसी संतानें हैं?
अब नहीं तो कब संभलेंगे हम?
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