
Share0 Bookmarks 37 Reads0 Likes
आख़िर तादाद कितनी है
कुछ भी ख़बर नहीं
और न ख़्याल आया कभी
कि पता करूँ इनके बारे में
मगर यक़ीनन तय है
इनकी तादाद बेशुमार होगी।
यक़ीनन कह सकता हूं
ये अलग-अलग मज़हब के है
उम्र के अलग-अलग पड़ाव पर
अलग-अलग रंग रूपों के
अलग-अलग मिज़ाज के
बेबसी से देखते रहते हैं
बिना शिकायत किए
तंग बंद कमरे के झरोखों से
जहां अंधेरे का क़ब्ज़ा है
जहां ये सारे के सारे
एक साथ गुज़र-बसर करते हैं
ऐसा लगता है
ये शह-मात का
खेल खेल रहें हैं
अलग-अलग खानों में खड़े हैं
टकटकी लगाए, मुस्तैद
अपनी-अपनी पारी के इंतजार में
कि कब उनकी पारी आएगी
और वे जीत कर
इस तंग कमरे से बाहर आएंगे
अपनी जीत का जश्न मनाने
इस खुली आब-ओ-हवा में।
© रविन्द्र कुमार भारती
#rabindrakbhartii
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments