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अजनबी हर शख़्स है
और अंजान हर रहगुज़र यहां
हर तरफ हीं भीड़ है
और शोर में सिसकती तन्हाई
कि कोई किसी की नहीं सुनता
बस कहने को अपने-पराये हैं
सारे हीं हैं हमसफ़र
कहीं उदास की उबासी
कहीं खुशियों की ख़ुशबू
कहीं दिल तक हैं ख़ंजर
कहीं शूलों ने निभाई है रंजिश
कि हर
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