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किश्तियों को रास्ता करते करते
समन्दर रुक गया आहिस्ता चलते चलते
छांव,फल,शाखे फिर तना गया,
दरख़्त पूरा बंट गया हंसते हंसते!
अभी अभी ईमान कि बोली लगी है शायद
आदमी बिका सामान रह गया बिकते बिकते!
फानी जिस्म का कब तक गुरूर करे राही
कोई पुरुषार्थ ही हो जाए मरते मरते!
राहीरामेश
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