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युद्ध और शान्ति

R N ShuklaR N Shukla March 21, 2022
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जब होती है असुरक्षा की भावना,

जब शत्रु देश देते हैं दस्तक –

सीमाओं पर !

तब उठाने ही पड़ते हैं हथियार !

करना पड़ता है युद्ध– रक्षार्थ !

युद्ध और शांति बीच !

भ्रांति नहीं पालूंगा !

क्षणिक शांति स्थापन हेतु–

चिर अशांति  नहीं वारूँगा !

औपनिवेश की शक्ति समक्ष 

हार नहीं मानूँगा !

इनकी दुरभिसंधि तोडूंगा !

भली–भाँति  जानता हूँ

युद्ध की विभीषिका को

फिर भी युद्ध करूँगा !

युद्ध अटल है !


युद्ध में भी शांति पहल है !

काँपेगी  धरती !

चाहे सहमेगा आकाश !

सागर के प्रशांत जल-तल में 

कितनी अधिक भरी है आग !

विस्तारवादी नफ़रतें –

जब–जब बढ़ी हैं 

इतिहास साक्षी है–

हर तरफ आग ! लगी है

युद्ध-काल–में

एक-एक आदमी 

बन जाता है –बम !

एक-एक व्यक्ति प्रक्षेपास्त्र !

बोली भी गोली से क्या है कम ?

कहीं बम फटा ! कहीं गोली चली !

गरजा  प्रक्षेपणास्त्र !

टैंक फटा ! हृदय जला !

अंधेरी रातों में ; अचानक

गिरते हैं बम !

चलते हैं–भारी भरकम कदम !

कुचल दिए जाते हैं 

न जाने कितने सिर

भारी-भारी बूटों तले 

रौंद दिए जाते हैं !

इन्हीं सब मंजर बीच;  

कुछ छायाएँ मानव की

सरसराहट........ध्वंस !

और  महा  विध्वंश !

युद्ध की विभीषिका में –

पिसता  है मानव-मन !

वार्ता पर वार्ता  

किंतु और परन्तु बीच –

समाधान –सिफ़र है !

सभी  ज़िद  पर अड़े हैं

लाशों के ढ़ेर पर खड़े हैं

मन में शांति नहीं, 

'बम'  भरे हैं –

नफरत की भट्ठी में –

सभी लोग जले हैं !

कोई छोटा या बड़ा 

नहीं होता , –

दिल बड़े होते हैं !!



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