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जब होती है असुरक्षा की भावना,
जब शत्रु देश देते हैं दस्तक –
सीमाओं पर !
तब उठाने ही पड़ते हैं हथियार !
करना पड़ता है युद्ध– रक्षार्थ !
युद्ध और शांति बीच !
भ्रांति नहीं पालूंगा !
क्षणिक शांति स्थापन हेतु–
चिर अशांति नहीं वारूँगा !
औपनिवेश की शक्ति समक्ष
हार नहीं मानूँगा !
इनकी दुरभिसंधि तोडूंगा !
भली–भाँति जानता हूँ
युद्ध की विभीषिका को
फिर भी युद्ध करूँगा !
युद्ध अटल है !
युद्ध में भी शांति पहल है !
काँपेगी धरती !
चाहे सहमेगा आकाश !
सागर के प्रशांत जल-तल में
कितनी अधिक भरी है आग !
विस्तारवादी नफ़रतें –
जब–जब बढ़ी हैं
इतिहास साक्षी है–
हर तरफ आग ! लगी है
युद्ध-काल–में
एक-एक आदमी
बन जाता है –बम !
एक-एक व्यक्ति प्रक्षेपास्त्र !
बोली भी गोली से क्या है कम ?
कहीं बम फटा ! कहीं गोली चली !
गरजा प्रक्षेपणास्त्र !
टैंक फटा ! हृदय जला !
अंधेरी रातों में ; अचानक
गिरते हैं बम !
चलते हैं–भारी भरकम कदम !
कुचल दिए जाते हैं
न जाने कितने सिर
भारी-भारी बूटों तले
रौंद दिए जाते हैं !
इन्हीं सब मंजर बीच;
कुछ छायाएँ मानव की
सरसराहट........ध्वंस !
और महा विध्वंश !
युद्ध की विभीषिका में –
पिसता है मानव-मन !
वार्ता पर वार्ता
किंतु और परन्तु बीच –
समाधान –सिफ़र है !
सभी ज़िद पर अड़े हैं
लाशों के ढ़ेर पर खड़े हैं
मन में शांति नहीं,
'बम' भरे हैं –
नफरत की भट्ठी में –
सभी लोग जले हैं !
कोई छोटा या बड़ा
नहीं होता , –
दिल बड़े होते हैं !!
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