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१
अपनी सफलताओं पर इतरायें नहीं ।
२
सभी के कार्य आयु-वर्गानुसार आवंटित हैं । अतः अपने हिस्से का कार्य पूरे मनोयोग से करें ।
३
छात्र का कार्य है –पढ़ना । अध्यापक का कार्य पढ़ना-पढ़ाना दोनों है ।
४
दोनों से ही अपेक्षित है –स्वाध्याय करना । प्रमाद ना करना।
५
शिक्षण-संस्थानों में शिक्षण-कार्य का न होना जहाँ छात्र/छात्राओं का भविष्य अंधकारमय कर देने वाला है वहीं
शिक्षकों के लिए – "एकेडमिक डेथ " है।
६
अतः जो भी , जितना भी समय मिले , शिक्षण-कार्य से विमुख ना हों ।
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