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तुमसे मिलने आ पाऊँगा ?
चाह की सरिता उमग रही है ,
हाथ बँधे हैं हथकड़ियों से ,
पैरों में जंजीर बँधी है ,
इन जंजीरों को तोड़-फेंक
पावों में थिरकन ला पाऊँगा ?
तुमसे मिलनेआ पाऊँगा ?
प्यार की डाली झुकी हुई है
तेरी एक छुवन पाने को
उत्कण्ठाएँ ! मचल रही हैं
नदी नहाने की बेला में
तुमसे मिलने आ पाऊँगा ?
दिन-दहाड़े , सरपट दौड़े
दुनिया की परवाह न करते
भीड़–भाड़ से भरे शहर में
तुमको गले लगा पाऊँगा ?
तुमसे मिलने आ पाऊँगा ?
पश्चिम ! गोधूली वेला में
खेतों की मेढ़ों से होकर
गदराये फसलों की झुरमुट से
अगराये मन की आँखों से
अपलक तुम्हें देख पाऊंगा ?
तुमसे मिलने आ पाऊंगा ?
शांत और एकांत प्रहर में
धवल चंद्रिका की आभा में
टिम-टिम करते तारों के संग
सरवर तीरे...
धीरे – धीरे चलते–चलते
तुमसे बातें कर पाऊँगा ?
छितवन के सुरभित आँगन में
मंद - मन्द जब वायु हो चलती
मदिरारुण नयनों की चितवन में
अपना प्रतिबिम्ब निहार सकूँगा ?
जीवन के इस गहन तिमिर में
ज्योतिपुञ्ज - सी तेरी यादें !
उन स्नेहिल स्मृति-सागर के
गहरे तल से , मानस–मोती
चुन पाऊँगा ?
तुमसे मिलने आ पाऊँगा ?
मैं तेरा एक ऋजु प्रेमी हूँ !
नहीं जानता इधर–उधर की
तेरी मुख-छवि की स्मृति में
कटते जाते.. दिन औ' रातें !
शायद ऐसा दिन आ पाए
इस जीवन के किसी मोड़ पर ,
तुमसे यूं मिलना हो जाये !
तब मैं इन तृषित नयनों से
तेरे छवि–रस को पी पाऊंगा ।
जीवन के इस काल-खंड में
आशाओं की दीप-शिखा !
जल रही अनवरत...
देखो जब भी , मिलना तुम
बंधनहीन हृदय से मिलना !
मेरा हाथ पकड़ लेना !
तुम्हें सुनाऊंगा मैं अपनी
सारे संकोचों को तजकर
तुम भी 'जी' में आये
जो भी आये ,
मुक्त हृदय से कह देना !!
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