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तुमसे मिलने आ पाऊँगा ?
चाह की सरिता उमग रही है ,
हाथ बँधे हैं हथकड़ियों से ,
पैरों में जंजीर बँधी है ,
इन जंजीरों को तोड़-फेंक
पावों में थिरकन ला पाऊँगा ?
तुमसे मिलनेआ पाऊँगा ?
प्यार की डाली झुकी हुई है
तेरी एक छुवन पाने को
उत्कण्ठाएँ ! मचल रही हैं
नदी नहाने की बेला में
तुमसे मिलने आ पाऊँगा ?
दिन-दहाड़े , सरपट दौड़े
दुनिया की परवाह न करते
भीड़–भाड़ से भरे शहर में
तुमको गले लगा पाऊँगा ?
तुमसे मिलने आ पाऊँगा ?
पश्चिम ! गोधूली वेला में
खेतों की मेढ़ों से होकर
गदराये फसलों की झुरमुट से
अगराये मन की आँखों से
अपलक तुम्हें देख पाऊंगा ?
तुमसे मिलने आ पाऊंगा ?
शांत और एकांत प्रहर में
धवल चंद्रिका की आभा में
टिम-टिम करते तारों के संग
सरवर तीरे...
धीरे – धीरे चलते–चलते
तुमसे बातें कर पाऊँगा ?
छितवन के सुरभित आँगन में
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