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हैं अनेकों यहाँ
तुमसा नहीं है
इस धरा पर !
हैं करोड़ों सूर्य !
पर ,
तुम सा नहीं
आलोक उनमें ।
एक दिनकर है
तो क्या ? वह
हर ही लेता
गहन-तम को ।
एक हिमकर है ,
तो क्या
पड़ता है भारी
जुगनुओं पर !
एक स्नेहिल स्पर्श !
भारी पड़ ही जाता
आँसुओं पर !!
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