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फूलों की रंगत और अच्छे लोगों की संगत से परचें , समय को इन पर खरचें । ये जीवन को महका देते हैं ।
आप जानते ही हैं कि गोबरैलों (एक तरह के कीड़े)
को गोबर में रहना ही पसंद है । गोबर की दुर्गंध उनके लिए सुगंध है । जबकि भ्रमरों को फूल पसंद है। हम मनुष्य हैं ।अब हमारे ऊपर है कि हम किस तरह के वातावरण में रहना चाहते हैं । किस तरह की संगति करते हैं । दुर्जनों की संगति या सत्संगति ।
जहाँ दुष्टों का साथ ज्ञान का विनाश कर देता है ,अपयश देता है , और घोर नरक में डाल देता है वहीं अच्छी संगति विवेक-बुद्धि , स्वच्छ विचार-भाव उपजाती हई शुद्ध -सात्विक जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त करती है और सभी तरह के मोह-जनित दुःखों का नाश कर देती है ।
सत्संगति के प्रभाव और महत्व को भगवद्भक्त गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है कि दुष्ट से दुष्ट व्यक्ति भी सत्संगति पाकर सुधर जाते हैं –
''सठ सुधरहिं सतसंगति पाई''
अतः हमें दुर्जनों का संग त्यागकर सज्जनों का साथ करके
शुद्ध , सात्विक और निर्द्वंद जीवन की ओर बढ़ना चाहिए ।
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