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वंदन है अभिनंदन है !
रोम-रोम में स्पंदन है !
तेरे अतुलित पराक्रमों से
अरिदल में क्रंदन है ...
हे शत्रुजीत ! हे राष्ट्राधक !
हे मातृभूमि के रक्षक !
सर्व नाश कर देते –
तत्क्षण शत्रु पक्ष का !
नभ हो ,जल हो , थल हो
या हों हिमगिरि के –
उत्तुंग – शिखर !
अदम्य साहस तेरे अंदर !
कर जाते दुर्गम पथ पार
बढ़ जाते...फिर चढ़ जाते
दुश्मन की छाती –
कर देते चरमर !
प्राणों को हर लेते तत्क्षण !
अति दुर्गम – दुस्तर –दीर्घकाय
सीमाओं की रक्षा तुम्हीं हो करते !
प्राण न्योछावर तुम ही करते !
तुमसे ही अस्तित्व सुरक्षित
मातृ – भूमि का !
हे परमवीर ! राष्ट्र - प्रहरी !
तुम सबको –
शत् - शत् प्रणाम !
शत् - कोटि नमन !
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