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नेता जी आये हैं
एक सुनिश्चित
काल-खण्ड में
अतिसुंदर –
मार्तण्ड-हाल में
ठहरे हैं ।
जनता से वो
मिलने निकले
जिंस जिस्म पर
गन लटकाये
फॉर्चुउनर से
नीचे उतरे ...
पान कचरते ,
पिच-पिच करते
गली-कूचों को
गन्दा करते।
धन्य हुआ
सौभाग्य हमारा
हमसे हाथ मिलाये हैं
नेता जी आये हैं ।
मुद्दों की क्या बात करें वो
भागे – भागे चलते हैं।
जन–भागों को–
जबड़ों में दाबे
पान सरीखे
कूँच-कूँच कर ,
जनता का रस
चूस-चूस कर
पिच-पिच करते
थूके हैं ।
बात हमारी
नहीं हैं सुनते
मानो
बहरे - गूँगे हैं !
आए हैं वो
कई साल पर
हम सब तो हैं ,
उसी हाल पर !
गाल गुलाबी ,
आँख शराबी ,
चाल नबाबी ,
उनकी देखी !
ये सब है भाई !
किस्मत की लेखी ।
चलते हैं ओ
डग-मग डग-मग
पैर नहीं
सीधे पड़ते हैं ।
गर्द उड़ाते आये थे
धुआँ बनाकर चले गए !
जुबाँ खुली !
अधखुली रह गई !
जनता तो भइया ,
ठगी रह गई !!
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