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मैं कविता हूँ

R N ShuklaR N Shukla March 25, 2022
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मौन  में  भी  व्यक्त  हूँ 

शब्द  में   मैं  अर्थ   हूँ 

अविरल  प्रेम धारा  हूँ

दुष्ट जन  की  कारा हूँ 

मैं  कविता  हूँ  !!


छंद भी, स्वच्छंद भी हूँ 

रस का  समूचा चक्र हूँ 

कवि-मन की सरिता हूँ

मैं प्रखर ज्योति सविता हूँ !

हाँ !  हाँ ! मैं  कविता  हूँ  !!


कवि  लिखता  है  मुझे; या

मैं स्वयम कवि को हूँ लिखती

स्वर-सुरों में गीत बनकर

मैं सभी का  मीत बनकर

खिल ही उठती प्रीति बनकर !

हे कवि ! मैं तेरी कविता हूँ !!


सु-भावना से भावित मैं होकर

रूप  धरती  हूँ  मनोहर  !

तोड़  देती  बंधनों को

जोड़ती  विगलित - हृदों को

जिंदगी  की  राह  में  –

सत्य  की  प्रतीति  हूँ  मैं

सुकवि-मन  की  गीत हूँ

मैं  कविता  हूँ  !!


भावनाओं की सघनता –

जब   पिघलकर –

उमड़ पड़ती  कवि-हृदय से

फूल  या  कि  शूल  ब

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