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साह्यचर्य ! प्रकृति का सर्वोत्तम !
जिसका आँचल है अतिशीतल
प्रकृति सुघर ! धर विविध रूप !
संसृति को करती अति पावन !
प्रकृति की कृति में मधुर छंद !
रन्ध्र – रंध्र उच्छ्वसित गन्ध !
यह प्रकृति मनोहर सहज रूप !
सहबोध सुंदर सहयोगी स्वरूप !
खेतों में खटता , वह हलवाहा !
उसके माथे से श्रम – सीकर !
गिर रहे अनवरत टप ! टप ! टप !
वह खिली धूप !
जीवन में श्रम के खिले पुष्प !
प्रकृति का निरख कांतिमय रूप !
खिले मन में नव कुसुम अनूप !
अहा ! कैसा यह सुन्दर रूप !
विषम-सम में यह भव्य स्वरूप ?
निर्मल – मन !
नव–सृजित नवल !
शुभ काव्य-कुसुम !
मधुमय – मधुबन !
मधुरिम – आंगन !
विस्तृतभावों -सा
उदधि ! जलद !
वरदान सदृश,
हैं–बरसाते –
अमृतमय जल !
सुन्दर – कानन !
विहग-कुल-कलरव !
चह–चह चह–चह
टीं टीं टूँ टूँ
झिंन-झिंन झूँ-झूँ
भूचर के स्वर !
पर्वत – पठार !
गिरि–गुहा– गहन !
झर – झर झरते
झरनों से जल !
पर्वत के वक्षःस्थल से निकल
वह सुखद सलोनी प्रात वायु
कर पार कुञ्ज निर्झर प्रपात
छनक-छिनक वह मृदुलगात
मंद-मंद बहती मलयानिल !
सुरभित – शीतल !
स्पंदित है कर जाती
तन – मन व प्राण !
आह्लादित कर देती –
जीवन !
वह जीवनदात्री –
प्राण – वायु !
कल – कल – छल–छल
बहता जाता अति निर्मल
सरितामृत – जल !
उल्लसित नवल –
अविरल...जीवन ...
अर्धनि
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