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कुछ क्षण प्रकृति संग

R N ShuklaR N Shukla March 17, 2023
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साह्यचर्य ! प्रकृति का सर्वोत्तम !
जिसका आँचल है अतिशीतल
प्रकृति सुघर ! धर विविध रूप !
संसृति को करती अति पावन !
प्रकृति की  कृति में मधुर छंद !
रन्ध्र  –  रंध्र उच्छ्वसित गन्ध !

यह  प्रकृति मनोहर सहज रूप !
सहबोध सुंदर सहयोगी स्वरूप !
खेतों में खटता ,  वह  हलवाहा !
उसके  माथे  से  श्रम  –  सीकर !
गिर रहे अनवरत टप ! टप ! टप !

वह खिली धूप !
जीवन में श्रम के खिले पुष्प !
प्रकृति का निरख कांतिमय रूप !
खिले  मन में  नव कुसुम  अनूप !
अहा ! कैसा यह सुन्दर रूप !
विषम-सम में यह भव्य स्वरूप ?

निर्मल  –   मन ! 
नव–सृजित नवल !
शुभ काव्य-कुसुम !
मधुमय –  मधुबन !
मधुरिम  – आंगन !

विस्तृतभावों -सा
उदधि  !  जलद !
वरदान सदृश,
हैं–बरसाते  –
अमृतमय जल !

सुन्दर   –   कानन !
विहग-कुल-कलरव !
चह–चह  चह–चह
टीं    टीं    टूँ    टूँ 
झिंन-झिंन झूँ-झूँ
भूचर के स्वर !

पर्वत   –  पठार !
गिरि–गुहा– गहन !
झर  –  झर  झरते 
झरनों   से    जल !

पर्वत के वक्षःस्थल से निकल
वह सुखद सलोनी प्रात वायु
कर पार कुञ्ज निर्झर प्रपात
छनक-छिनक वह मृदुलगात
मंद-मंद बहती मलयानिल !
सुरभित  –   शीतल !
स्पंदित है कर जाती
तन  –  मन  व  प्राण !
आह्लादित कर देती –
जीवन ! 
वह जीवनदात्री –
प्राण – वायु !

कल  – कल – छल–छल
बहता जाता अति निर्मल
सरितामृत –  जल !
उल्लसित   नवल –
अविरल...जीवन ...

अर्धनिशा !
शांतिमय प्रहर !
प्रेमाकुल हृदयों का
आमंत्रण !

नीले नभ में विहँसा मयंक !
विहँस उठे ! सर सरित सिंधु
वन ,उपवन औ'लता-गुल्म !
चहक उठे उर ! लहक ललक !
लख प्रकृति सुन्दरि की –
एक झलक !

वह पूर्णचन्द्र ! चन्द्रिका धवल !
वह चंद्रप्रभा ! फैली भू पर !
आलोकित ! सब निर्जन-पथ –
औ' वन – प्रान्तर !
निरख छटा ! सब रस-विभोर !
पशु –पंछी औ' वन्य – जीव !
सब भ्रमित ! चकित !
क्या हुआ भोर ?

स्नेहापूरित  मन !
रोमांचित – तन !
उत्पलित नयन !
प्रस्फुरित अधर ! 

लख ! प्रभा विमल !
खिली अधरों पर मृदु-मुस्कान !
सज गई  धरा  नव-वधू समान !
पीताभ – वर्ण  की  पहन  चुनर !
विनत आनन  !  वह मंजु हास !
मुकुलित हों तकते मृदुल भाव !

आलोकित – पथ  से  होकर 
उतर पड़ा नभ विजितकाम !
हृदय में भर रस – रंग – राग !
विश्वसृजन  !  अमर्त्यभाव !
अम्बर का वह – 
शुभ – परिरंभन ! 

मध्यरात्रि !
प्रिय आलिंगन
प्राणों में भरता स्पंदन !
तन पुलकित औ' मन शीतल !

खिल गई धरा ! 
नत हुए नयन ! 
हर्षित है मन !
आकाश-धरा का 
प्रेम  चिरन्तन !
कितना अनुपम !
अद्भुत  नर्तन !

विस्मित–से तकते 
ग्रह    –    नक्षत्र !
नयनाभिराम  !
अद्वितीय रास ! 

कितना   सुंदर ! 
कितना  पावन !
मधु  पूरित मधुर ! 
सुन्दर  –  आनन !

खिल गए नयन !
अपलक निहार 
सुषमा अपार !
देखा मैंने वह महारास !
जिसमें लय हैं सब –
ग्रह  !  नक्षत्र ! 
अम्बर ! 
दिङ् मण्डल !!

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