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'कविता' दिन की

R N ShuklaR N Shukla March 27, 2023
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क्या लिखूँ  दिन की कविता !
उसने ही मुझको लिख डाला !

उषःकालकी –
प्रथम रश्मि पर 
चढ़ कर आई थी कविता !
कोमल भाव भरा मन में
जीवन में भर दी तरुणाई !
आलस छूटा ! हुआ सवेरा
सोते से वो जगा गई !

आँख खुली तो देखा मैंने –
निकल पड़े हैं नीड़ों से पंछी
पंख – पसारे दूर... गगन में
चह - चह करते उड़ते जाते 
दूर दिशा में दाना चुगने ..

क्यारी में फूलों की रंगत
खुश हो-होकर झूम रही !
सुंदर दुनिया ! सामने खड़ी !

सुबह-सुबह की रौनक देखी
मैं भी 'श्रम'  में लीन हुआ !
जीवन के इस मध्य-काल में
सूरज -सा जीवन दमक उठा !
श्रम से उपजे स्वेद कणों से
तन-मन मेरा तरबतर हुआ !
दिन बीता फिर बीती सन्ध्या
धीरे ....धीरे दिन गुजर गया !!

कैसे-कैसे बीत गये दिन !
क्या इसकी कोई खबर मिली ?




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