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पंक्षियों के जो पंख
गिर जाते हैं वो
जुड़ते कहाँ हैं ?
टूट कर गिरी डालें
वृक्ष से जुड़ती कहाँ हैं ?
डोर से कटी पतंग !
हवाओं संग उड़ जाती
जुड़ती कहाँ है ?
जो पल गुजर गए
वो आते कहाँ हैं ?
जीवन की डगर में –
जो बिछड़ जाते हैं
वो फिर मिलते कहाँ हैं ?
बस एक ही मन्नत
माँगता है ये दिल !
किसी से किसी का
प्यार ना रूठे !
उनका छूटना
जैसे दिल का
टुकड़ों में टूटना
उनका चले जाना
अनकहा दर्द दे जाना–
जीवन भर के लिए !
शून्य-सी आँखें !
करती रहती हैं–
इंतजार !
आँसुओं की बरसात लिए !
सलामती की सौगात लिए !
दिल की धड़कनें
एकाकी जीवन के सूनेपन में
शोर मचातीं जगती रहतीं
कब भोर हो गई ,
पता कहाँ चलता है ?
वह शोर
दिन के कोलाहल में
कुछ दब सा जाता
बन्द कहाँ होता है ?
फिर तो
जीवन होने की निशानी –
वही धड़कनें !
वही शोर .....वही ...दिन...
वही रातें.....
यादों का सिलसिला.....
थमता कहाँ है ?
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