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जीवन की डगर में

R N ShuklaR N Shukla February 13, 2023
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पंक्षियों के जो पंख 
गिर जाते हैं वो
जुड़ते कहाँ हैं ?

टूट कर गिरी डालें
वृक्ष से जुड़ती कहाँ हैं ?

डोर से कटी पतंग !
हवाओं संग उड़ जाती
जुड़ती कहाँ है ?

जो पल गुजर गए 
वो आते कहाँ हैं ?

जीवन की डगर में –
जो  बिछड़ जाते हैं
वो फिर मिलते कहाँ हैं ?

बस एक ही मन्नत 
माँगता है ये दिल !
किसी से किसी का
प्यार ना रूठे !

उनका छूटना 
जैसे दिल का
टुकड़ों में टूटना
उनका चले जाना
अनकहा दर्द दे जाना–
जीवन भर के लिए !

शून्य-सी आँखें !
करती रहती हैं– 
इंतजार !
आँसुओं की बरसात लिए !
सलामती की सौगात लिए !

दिल की धड़कनें 
एकाकी जीवन के सूनेपन में
शोर मचातीं जगती रहतीं
कब भोर हो गई ,
पता कहाँ चलता है ?

वह शोर 
दिन के कोलाहल में
कुछ दब सा जाता 
बन्द कहाँ होता है ?
फिर तो 
जीवन होने की निशानी –
वही धड़कनें !
वही शोर .....वही ...दिन...
वही रातें.....
यादों का सिलसिला.....
थमता कहाँ है ?

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