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घड़ी हाथ में ,
घड़ी बँधी है ,
क्षण से ।
क्षण,
मुक्त है घड़ी से ।
और जिंदगी ,
बँधी है क्षण से ।
घड़ी हाथ में बाँध चला
ताक़ि
समय के साथ
चल सकूँ पल-पल !
घड़ी तो बंध गई,
क्षण को कैसे बांधू ?
छोटी-सी जिंदगी !
और– क्षण?अगणित !
गति ?
जीवन में
गति नहीं तो
दुर्गति !
जिंदगी और पल !
बाँधे नहीं जा सकते,
जिये जा सकते हैं।
क्षणों के संग-संग
चलना ,
जिंदगी की जीत !
और
हार मान लेना
विपरीतताओं से
हार है
जिंदगी की ।
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