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सुख-दुःख से
आलोड़ित !
यह मानव जीवन !
पतझड़ में गिरते
पत्तों -सा जीवन !
माना –
पतझड़ अधिक
बसंत है कम ,फिर भी तू
क्यों घबड़ाता है रे मन !
रुदन में हास ही जीवन !
जिंदगी आजमाती ही है
उसे आजमाने दो !
मन में नई कोंपलें उग आने दो!
जीवन को मधुमय बसंत–सा
सज जाने दो !
जिंदगी भले ही बीत जाये, पर -
जिजीविषाओं को मत मारो !
जिजीविषाएं ! जीवन में -
नए-नए आयाम गढ़ती है,
रूदन में हास की राह बनाती हैं ,
जीवन जीना सीखाती हैं ।
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