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तुम चिर सुंदर ! आनंद - धाम !
सत्य रूप ! तुम शान्त –भाव !
हे निर्विकार ! करूणा अपार !
ममहृदय क्लेश तम हर विषाद !
तू है अनादि औ' अंतहीन !
तू महाछंद ! मैं छन्दहीन!
हे विश्वेश्वर ! हे सर्वेश्वर !
तू अक्षर ! मैं नाशवान !
मैं मोहग्रसित तू परमज्ञान !
मेरे उर – अंतर का तम हर
डम-डम डमरू की छेड़ तान !
तेरे डमरू की ध्वनि को सुन
मन के मिट जायें ताप –पाप !
हे नीलकण्ठ ! करूणानिधान !
निर्भरा भक्ति अब कर प्रदान !!
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