गीता वंदन!'s image
Share0 Bookmarks 215926 Reads0 Likes

काव्यमयी 'कविते' हो तुम!

अन्तर्मन की 'सरिते'हो तुम!

हे गीते!तेरा स्वर पाकर

धन्य हुआ मेरा जीवन!


जीवन में कितना विष घोला

विषधर बनकर डसता ही रहा

जीवनभर पापाचार किया

पापी बनकर घूमता रहा

जीवन का कुछ ना अर्थ रहा

दिशाहीन ही जीवन,मेरा बना रहा...


मेरे उद्भ्रांत जीवन को–<

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts