
Share0 Bookmarks 156 Reads1 Likes
देख अरे! इंसान
बुझे हुए चूल्हे की आग!
जीवन की ठंढ़ी पड़ती आस!
भूख-प्यास से जीवन
इनका बुझा हुआ है
ज्यों बुझीआग की ठंढ़ी राख!
न जाने कब के ये भूखे!
कटे-फटे कपड़े में रूखे!
दिखते हैं कितने ये सूखे!
सूख गई हैं जिनकी आँतें!
बुझी हुई हैं इनकी आंखें!
दाने पाने की
आस 'शेष' है
इनके जीवन का,
यह महा क्लेश है…
विपन्नता-लाचारी –
इनके जीवन का पर्याय
क्या कुछ नहीं उपाय?
करुणामयी
एक दृष्टि हमारी
इनके बुझे हुए
जीवन-पथ को
कर देगी आलोकित!
धुआँ उठे चूल्हे से
आँखों में
भर आयें आंसू–
आशाओं के,
घर के सब बच्चे-
खुश हो-होकर -
दौड़ लगाएँ
इनका विगलित-जीवन-
बच जाए
जीवन खुशियों से-
भर जाए…
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments