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हाड़ कँपादेने वाली
जाड़े की सर्द रातें !
पुआल बिछे जमीन पर
गुदड़ी में लिपटी ठिठुरती हुई
दरिद्र स्त्री!
साँसों की गर्मी से
तन को गर्म करने का
असफल प्रयत्न करती हुई
नींद की प्रतीक्षा में –
करवटें बदल-बदलकर
पूरी रात काट देती है
मखमली सपनों के –
गर्म गलीचे पर बैठी,
सोचती हुई–
सुंदर दिन! आएगा!
सपने पूरे होंगे पर, कब ?
हर साल वही सर्द-भरी रातें!
वही सुंदर-मीठे सपन–
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