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अब वो बहुत बतियाने लगे हैं,
मुझसे ही नजरें चुराने लगे है।
शर्म-ओ-हया भूल जाने लगे हैं,
इशारों से मुझको बताने लगे हैं।
पूछूँ मैं उनसे ? ओ क्या कर रहे हैं
क्यूँ रिश्तों को अपने मिटाने चले हैं।
दरकते हैं रिस्ते तो होती है तड़पन
ओ अनबन पे अनबन किए जा रहे हैं...
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